टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Tuesday, March 24, 2009

प्रार्थना

एक सज्जन रोज़ सुबह घूमने जाते। एक दिन जब वे घूम-टहल रहे थे, तब उनके पास एक ककारा गाडी आ कर रुकी। गाडी में से उसका ड्राइवर बाहर निकला और उनकी और बढ़ा। सज्जन तय नहीं कर पाए की वह क्यों उनकी और आ रहा है। ड्राइवर के हाथ में एक कागज़ था। ने सोचा की शायद वह यह कागज़ पढ़वाना चाहता है।

ड्राइवरसज्जन के नज़दीक पहुंचा। उसने वह कागज़ उन्हें दिखाया। उस कागज़ पर एक बच्चे की तस्वीर थी। ड्राइवरने कहा की यह बच्चा उसका नाती है। वह जीवन और मौत के कगार पर झूल रहा है। उसे ब्लड कैन्सर है और abhii वह अन्तिम स्टेज पर है। वह अस्पताल में है और मौत से संघर्ष कर रहा है। सज्जन ने सोचा की आर्थिक मदद aarthik madad की शायद बात सोच रहा है। उनहोंने अपनी जेब की और हाथ बढाया। ड्राइवर ने तुतंत उन्हें रोकते हुए कहा की वह उनसे किसी भी तरह की आर्थिक मदद की आस लेकर नहीं आया है। वह बस इतना भारत चाहता है की वे उस बच्चे के लिए प्रार्थना भर कर दें।
सज्जन थोड़े पेशोपेश में पड़ गए। वे किसी भी तरह की ध्हर्मिक बातों या पूजा-प्रार्थना में यकीन नहीं करते थे। मगर उस ड्राइवर की बातों में कुछ ऐसा था की वे अपने को रोक नहीं सके। आश्चर्य की उस दिन उनका बहुत अच्छे से बीता। सारे काम भी समय पर हो गए। मन भी बहुत शांत लग रहा था।
ड्राइवर उसके बाद से कई दिनों तक नहीं आया। सज्जन रोज उसकी राह तकते। उन्हें बच्चे की हालत जानने की उत्सुकता थी। एक दिन ड्राइवर दिखा। सज्जन ने उसका हाल समाचार पूछते हुए फ़िर उसके नाती के बाबत पूछा। ड्राइवर ने कोई जवाब नहीं दिया। थोड़ी देर के मौन के बाद वह बोला की उसका नाती तो उसी शाम को गुजर गया। लेकिन उसे इस बात का संतोष है की अन्तिम समय में वह बहुत शांत था। उसकी तकलीफ एक दम से कम हो गई थी। यह सब आपकी प्रार्थना का फल है। मैं इसके लिए आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ।
सज्जन ने ड्राइवर kaa haath pakad लिया। उनके मुंह से कोई भी बात नहीं निकली। बस आंखों से चाँद boonden गिरीं और धरती में viliin हो gaiin।

6 comments:

mehek said...

bahut marmik katha,ansoon laa hi diye ankhon mein.

संजय तिवारी said...

बहुत मार्मिक कहानी है

आलोक सिंह said...

ह्रदय को चोट देने वाला प्रसंग है , शायद ही किसी की आंखे पढने के बाद गीली न हो .

अनिल कान्त said...

बहुत ही मार्मिक पोस्ट है

नीरज गोस्वामी said...

मन भर आया पढ़ कर...
नीरज

संगीता पुरी said...

एक ऐसा ही हादसा मेरे यहां हुआ था ... मेरे दूर के रिश्‍तेदार के भाई की किडनी खराब हो गयी थी ... उसके तीनो भाई यत्र तत्र मदद के लिए दौड रहे थे ... और वह हास्‍पीटल में जीवन और मौत से जूझ रहा था ... भाई जबतक पैसे लेकर पहुंचे ... उसकी मौत हो गयी ... आपके पोस्‍ट को पढकर वह घटना याद आ गयी।