एक बार एक स्कूल में क्विज़ का कार्यक्रम चल रहा था। बहुत मजेदार और दिलचस्प कार्यक्रम था, हमेशा के क्विज़ की तरह। प्रशनकर्ता हरेक ग्रुप से अंत में एक सवाल पूछते- " आप के घर में काम करनेवाली जो बाई है, उसका नाम बताये, या आपकी बिल्डिंग का जो सफाई कामगार है, उसके बारे में चार लाइन बोलिए, या आपके स्कूल के चपरासी का क्या नाम है, या आप जिस बस से आए हैंं उसका ड्राइवर या कंडक्टर देखने में कैसा था? कोई भी ग्रुप सही जवाब नहीं दे सका। सबके मन में मगर यह जिज्ञासा थी की क्या इस प्रश्न का उत्तर न देने से अंक कत जायेंगे? एक ने अपने मन का यह सवाल दाग भी दिया। प्रश्नकर्ता ने मुस्कुराते हुए कहा की "नहीं, अंक तो काटे नहीं जायेंगे, लेकिन जीवन की पाठशाला में आप सफल नहीं हैं, हम जिस समाज में रहते हैं, उस समाज की छोटी से छोटी इकाई का भी उतना ही महत्त्व है, जितना हमारे बदन में नाखूनों का या पलक के हर बाल का। मगर हम उन पर कभी भी ध्यान नहीं देते और समझाते हैं की उनसे क्या बात करनी चाहिए या उन पर क्या ध्यान दिया जाए। हकीक़त तो यह है की ये सब हमारे जीवन के बड़े ही अहम् हिस्से हैं। मैं आप सबको यह टास्क दूंगा की आप सब आज के पूछे प्रश्न के उत्तर ओपन आस-पास खोजें औए हमें लिख भेजें।
एक बच्ची ने अपनी बाई का नाम पूछ कर लिख भेजा। सवाल करता ने फ़िर से पूछा की आप उसे क्या कहकर बुलाती हैं? बच्ची ने कहा की "बाई" प्रशनकर्ता ने कहा की "हमारी सभ्यता व संस्कृति में अपने से बड़ों को बुआ, चची, दीदी आदि संबोधन से बुलाने का रिवाज है और यही आपको आगे चलाकर विनम्र बनाएगा। आज अंकल और आंटी का ज़माना है तो कम से कम आप उसे आंटी तो कह सकती हैं। "
यह सीख हम अपने बच्चों या अपने आस-पास को दे सकते हैं और हाँ, सबसे पहले ख़ुद इस सीख पर अमल करें तो कैसा रहेगा?
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2 comments:
सही कहा सम्मान देने से ही सम्मान मिलता है अच्छी शिक्षा देने से बच्चों का भविष्य बनेगा .
बहुत अच्छी रचना है ।
समय हो तो मेरे ब्लाग पर प्रकाशित रचना-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-पढ़े और अपना कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
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