टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Thursday, August 30, 2007

लोक कथाएं हमारी संस्कृति व इतिहास से जुडी हुई है.मैथिलि भाषा में लोककथाओं कि समृद्ध परम्परा है.हमारे पूर्वजों ने इस मौखिक परम्परा को विक्सित किया था.अपने बचपन में मुझे भी इन कथाओं को सुनने का अवसर मिल.मिथिला की होने के नेट मेरा यह कर्तव्य है कि मैं इन कथाओं को लिखूं.ये कथाएं मेरे संग्रह मिथिला की लोककथाएँ से ली जा रही हैं.मेरा प्रयास होगा कि मैं इन्हें आपके लिए प्रस्तुत करुं ताकि आप भी इनका आनन्द ले सकें और अपने बच्चों को भी सुना सकें.मेरे इस प्रयास पर अपके विचारों व टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। - विभा रानी

Wednesday, August 29, 2007

बैगन और मूली

(बैगन और मूली)
एक किसान का खेत काफी बड़ा था। खेत के एक भाग मे उसने तरह तरह की सब्जियाँ लगा रखी थीं । अपने पडोसियों को भि वह अपने खेत की सब्जियाँ भेजा करता ।
एक बार उसने अपने यहाँ पूजा रखवाई और पूरे गांव को खाने का न्यौता दिया । किसान के खेत मे बैंगन और मूली लगे हुए थे। दोनों में लड़ाई वाली दोस्ती थी । यानी दोनों लो बिना बतियाए चैन भी नहीं मिलता और बतियाने पर बिना लडाई के गुजर भी नहीं होती ।
तो उस दिन फिर दोनों टूल पडे । बैगन जमीं के ऊपर रहने के कारन उपरको कहलाता और मूली ज़मीं के निस रहने के कारन तरको.किसान के घर की हलचल देख बैगन ने मूली से कहा- हे तरको? मूली ने जावाब दिया- की हे उपरको? आज गाँव मे बड़ी हलचल है।
मूली ने कहा- अपने लिए झख.तुझे तो लोग आएंगे, चट से तोदेंगे, पत् से काटेंगे, और पका कर खा जएंगेमेरे लिए तो लोग आवेंगे, मेरे पास बैठेंगे, खुरपी से ज़मीं कोरेंगे, मुझे निकालेंगे, तालाब में ले जायेंगे, धोएँगे, पोछेंगे, छिलेंगे, काटेंगे, तब तो खायेंगे.इसे कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू.

Monday, August 27, 2007

तिलिया और चवलिया (मिथिला की लोक कथा )

तिलिया जब सोइरी में ही थी , जब उसकी माँ चल बसी.मरद की जाट । औरत को बिसरते और दुसरा घर बसते देर लगाती है क्या.सो तिलिया के बाप ने भी दुसरी शादी कर ली।
नयी माँ को तिलिया फूटी आखों भी ना सुहाती। कई बार उसने उसे जान से मार् डालने की भी कोशिश की। पर बेटी जाट । इतनी जल्दी मरे भला ।
कुछ दिन बद उसकी नयी माँ ने भी एक बेटी को जन्म दिया। जब दोनों बेटियाँ थोड़ी बडी हुई, तब उसने अपनी बेटी को बारह साल के लिए चावल की कोठी और सौतेली बेटी को तिल की कोठारी में दाल दिया। उसका सोचना था की बारह सल् बद चावल की कोठी से उसकी बेटी चावल जेसी ही सफ़ेद और होकर निअलेगी, जबकी दुसरी तिल जायसी कली और बदसूरत ।
बारह बरस के बद उसनस पास के सभी नगरों से सुन्दर , धनी और जवान लडके बुलाए ताकी सबसे सुन्दर और धनी के साथ वह शादी कर सके । उसने पास के गाँव से एक भिखारी को भी बुलवाया, जिससे की दुसरी की शादी उसके साथ की जा सके।
अखिर इंतजार की घरी ख़त्म हुई। कोठी के दरवाजे खुले। दोनों बेटियों को देखकर वह बेहोश हो गई। तिल की कोठी से निकली बेटी तिलोत्तमा जायसी सुन्दर थी, जबकी चावल की कोठी से निकली बेटी हड्डियों का ढांचा। उसे देखकर भिखारी भी मुँह फेरकर काला गया, जबकी सबसे सुन्दर , खुबसुरत और धनी लडके ने तिलोत्तमा जायसी सुदर लडकी से शादी कर ली।