टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Friday, September 7, 2007

वारिस कौन?

एक राजा की चार बेटियाँ ही थीं.अब उन्हें उन्हीं में से अपना वारिस चुनना था.एक दिन उनहोंने अपनी चारो बेटियों को बुलाया और सभी को गेहूँ के सौ सौ दाने दिए और कहा कि वे इसका हिसाब पांच साल बाद मांगेंगे।
बड़ी बेटी ने अपने कमरे में लौटकर उन दानों को खिड़की से बह्हर यह सोचकर फेंक दिए कि पांच साल बाद जब वे इसे मांगेंगे तब वह भंडार में से लेकर राजा को दे देगी.दूसरी बहन ने उन दानो को चांदी की एक दब्बी में रखकर मखमल के थैले में रख दिया कि जब पिटा जी मांगेंगे, तब वह इसे दे देगी.तीसरी में बचपना ज़्यादा था.उसे गेहूँ के भुने दाने बहुत पसन्द थे। उसने उन दानों को भूनकर खा लिया। वह भूल भी गई कि राजा पांच साल बाद इसका हिसाब मांगेंगे।
सबसे छोटी राजकुमारी सोचती रही। उसे यह तो पता चल गया था कि राजा ने ये दाने कुछ सोचकर ही दिए होंगे.उसने अपने कमरे की खिड़की के पीछे वाली जमीन में उन दानों को बो दिया। समय पर अम्कुर फूटे, पौधे तैयार हुए, दाने निकले.राजकुमारी ने तैयार फसल में से दाने निकले और उसे फिर से बो दिया.इसतरह पांच सालों में उसके पास ढ़ेर साड़ी फसल तैयार हो गई।
पांह साल बाद राजा ने चारो बेटियों को बुलाया और उसे दाने मांगे। बड़ी ने भंडार से दाने लाकर दे दिए। दूसरी ने मखमल की दब्बी दे दी। दाने सभी सदाकर खोखले हो गाए थे। तीसरी ने कहा कि उसने दाने उसी समय भूनकर खा लिए थे। छोटी ने कहा कि दाने देखने के लिए उन्हें बाहर जाना होगा.रथ पर सवार होकर दोनों पिटा पुत्री खेत में पहुंचे। वहाँ खेत में फसल लहलहा रही थी। छोटी ने कहा- आपके दिए दाने अब यहाँ हैं। राजा ने उसे गले लगा लिया और कहा कि इस राज्य की सही वारिस तुम ही हो.

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