टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, September 12, 2007

लड़ाई के बहाने

एक औरत दिन-रात अपने पति से वज़ह खोज खोज कर लदा करती.उसकी लड़ाई से तंग आकर एक दिन पति ने कहा कि तू आखिर चाहती क्या है? औरत ने कहा कि वह उसे भरपेट खाना नहीं देता.आदमी ने कहा कि तू मुझसे ज़्यादा ख़ुराक ले ले और खुश रह।
आदमी सात सेर खाता था, जबकी औरत की ख़ुराक एक बार में चौदह सेर थी। आदमी ने उसे अपने लिए सात सेर और उसके लिए १४ सेर आता दे दिया। औरत ने सात सेर की सात रोटियाँ बनें और ओपन १४ सेर से केवल एक रोटी। आदमी जब काम पर से लौटा, तब उसने उसके आगे सातों रोटियाँ धर दीं.आदमी के खाने के बाद वह खाने बैठी।
दोनों का पेट भर गया था.औरत को आज दुगुना खाना मिला था, इसलिए अब वह खाने की बात को लेकर लड़ भी नहीं सकती थी.लड़ाई न होने से आज वह बड़ी बेचैन थी। अंत मेम उसने यह कहकर अपने पति को कोसना शुरू कर दिया कि उसने तो सात सेर की सात रोटियाँ खा लीं, जबकी वह उस घर की कुलावाद्हू है, मगर उसे केवल एक रोटी ही खाने को मिली.इस बात को उसने इसतरह से कहा- सात सेर की सात रोटी, चौदह सेर की एके , ई मुह्जरा सात गो खैलक, हम कुलवंती एके.यानी, जिसकी लड़ने की आदत होती है, वह बहाने खोज कर लड़ता है.

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