टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, August 29, 2007

बैगन और मूली

(बैगन और मूली)
एक किसान का खेत काफी बड़ा था। खेत के एक भाग मे उसने तरह तरह की सब्जियाँ लगा रखी थीं । अपने पडोसियों को भि वह अपने खेत की सब्जियाँ भेजा करता ।
एक बार उसने अपने यहाँ पूजा रखवाई और पूरे गांव को खाने का न्यौता दिया । किसान के खेत मे बैंगन और मूली लगे हुए थे। दोनों में लड़ाई वाली दोस्ती थी । यानी दोनों लो बिना बतियाए चैन भी नहीं मिलता और बतियाने पर बिना लडाई के गुजर भी नहीं होती ।
तो उस दिन फिर दोनों टूल पडे । बैगन जमीं के ऊपर रहने के कारन उपरको कहलाता और मूली ज़मीं के निस रहने के कारन तरको.किसान के घर की हलचल देख बैगन ने मूली से कहा- हे तरको? मूली ने जावाब दिया- की हे उपरको? आज गाँव मे बड़ी हलचल है।
मूली ने कहा- अपने लिए झख.तुझे तो लोग आएंगे, चट से तोदेंगे, पत् से काटेंगे, और पका कर खा जएंगेमेरे लिए तो लोग आवेंगे, मेरे पास बैठेंगे, खुरपी से ज़मीं कोरेंगे, मुझे निकालेंगे, तालाब में ले जायेंगे, धोएँगे, पोछेंगे, छिलेंगे, काटेंगे, तब तो खायेंगे.इसे कहते हैं अपने मुंह मियां मिट्ठू.

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