टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Monday, October 27, 2008

आती लक्ष्मी, जाते शनि

दीपावली के अवसर पर एक कथा ।
एक राजा थे- बड़े ज्ञानी, महात्मा, नीर क्षीर न्याय वाले। उनके दरबार से कोई भी असंतुष्ट होकर नहीं जाता था।
एक बार की बात है की देवी लक्ष्मी और देव शनि में यह बहस छिडी की उन दोनों में से कौन बड़ा है? बहस बढ़ते -बढ़ते तक़रार तक आ गई। स्वर्ग के सभी देव देवी इस बहस को सुलझाने आए, मगर कोई इसे सुलझा न सके। सभी देवी लक्ष्मी के तुनुक स्वभाव व् देव शनि के क्रोध से परिचित थे। अंत में यह तय हुआ की धरती पर जाकर राजा से पूछा जाए। आख़िर वे इतने नीर क्षीर न्याय वाले हैं की ग़लत निर्णय दे ही नहीं सकते।
देवी लक्ष्मी और देव शनि राजा के पास पहुंचे। अचानक दोनों को और वह भी एक साथ और तमतमाए रूप में देखा कर राजा समझ गए की आज या तो उनकी खैर नहीं या फ़िर उनके राज्य पर बड़ी भीषण विपत्ति आनेवाली है।
फ़िर भी राजा ने दोनों का स्वागत करते हुए उन्हें आसन ग्रहण कराने को कहा। वहाँ सोने व् चांदी दोनों के सिंहासन रखे हुए थे। देवी लक्ष्मी सोने के और देव शनि चांदी के सिंहासन पर अपने-आप बैठ गए। देवी लक्ष्मी और देव शनि ने अपने आने का प्रयोजन बताया। राजा ने तुंरत कहा की आपने तो अपनी-अपनी श्रेष्ठता स्वयं सिद्ध कर दी है, अपना अपना आसन स्वयं अपने लिए चुनकर। दोनों ने अपना -अपना आसन देखा।देवी लक्ष्मी तो बड़ी प्रसन्न हुईं, जबकि देव शनि नाराज़। वे राजा से बोले की आपको यह तय करके बताना है की हम दोनों में से कौन श्रेष्ठ हैं? अब राजा पशोपश में पड़े। फ़िर भी थोड़ी देर तक सोच विचार कर फ़िर बोले- " सौन्दर्य सम्पूर्ण शरीर में रहता है। हर कोई अपने शरीर के अलग-अलग कोण से सुंदर दिखता है। इसलिए हे देव, देवी लक्ष्मी सामने से सुंदर दिखाती हैं, जबकी आपका सौंदर्य पीछे से द्विगुणित हो जाता है। इसलिए यह तो कहा ही नहीं जा सकता की दोनों में से श्रेष्ठ कौन हैं।देव , शनि आप दोनों ही श्रेष्ठ हैं। बस अपने-अपने स्वरूप के इस कोण को देखें तो आप दोनों की ही महिमा को कोई भी नकार नहीं सकता। देवी लक्ष्मी और देव शनि दोनों ही यह सुनकर बड़े प्रसन्न हुए। दोनों ने राजा को वचन दिया की वे उनके कथन के अनुसार ही राजा के सामने आयेंगे, यानी सामने से आती हुई देवी लक्ष्मी और पीछे से देव शनि । कहने का अर्थ की आती हुई लक्ष्मी और जाते हुए शनि।