टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, September 5, 2007

कथौतिया

नगर का साहूकार बड़ा धनी था, मगर उसकी एक भी संतान न थी.उसकी पत्नी भी बड़ी सुशील थी.मगर संतान न होने का दुख उसे भी खाए जा रहा था।

आखिरकार ईश्वर ने उसकी सुनी और समय आने पर उसने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया.उसके बाल इतने सुन्दर थे कि सभी ने उसका नाम सुकेशी रख दिया. विधाता का खेल कि कुछ ही दिन बाद उसकी पत्नी काल का शिकार हो गई.लोगों ने समझा-बुझा कर साहूकार का दूसरा ब्याह करवा दिया.सौतेली माता को सुकेशी फूटी आंखों न सुहाती.उसने सुकेशी के सुन्दर बाल कटवा कर उससे घर के सारे काम कराने लगी और खाने में रूखा सूखा देने लगी.बाप के मन में भी उसने सुकेशी के प्रति नफ़रत भर दी.इतने पर भी उसे संतोष नहीं हुआ तो उसने सुकेशी को मरवा कर उसे नदी किनारे दफ़ना दिया.किसी को कानोकान खबर न हुई।
सुकेशी को जहाँ दफ़नाया गया था, वहां एक अंकुर फूटा और धीरे धीरे वह एक सुन्दर पेड में बदल गया.एक नौजवान केवट को वह पेड इतना पसंद आया कि उसने उस पेड की दाल से एक नाव बनाई.वह नाव इतनी सुन्दर बनी कि न चाहते हुए भी लोगों का दिल उसमें बैठाने को करता.युवक का धंधा चल निकला।
युवक का घर नदी किनारे ही था,जहाँ वह अपनी माँ के साथ रहता था.एक दिन सुबह सोकर उठाने पर दोनों ने पाया कि घर साफ है, खाना बना हुआ है.फिर तो रोज-रोज ऐसा ही होने लगा.युवक ने इसका पता लगाने की ठानी।
आधी रात बीतने पर उसने देखा कि नाव में से काले,घने,लंबे बलोंवाली एक सुन्दर युवती निकली.नाव रूपी लबादा उसने एक किनारे रख दिया और घर के सारे काम निपटाने लगी। काम खत्म होने के बाद उसने अपना नावावाला चोगा पहना और काली गई.युवक का मन उस युवती पर आ गया। उसने एक दिन देखा, दो दिन देखा, तीसरे दिन उसने रात में अपने घर के सामने एक घूरा जलवा दिया.पिछले दिनों की तरह ही युवती नाव में से निकली और घर के काम कराने लगी.मौक़ा देखकर युवक ने नाव रूपी चोगा घूर में डलवा दिया.काम कराने के बाद जाने के समय जब वह चोगा खोजने लगी तब उसे वह न मिला। वह घबडा गई। युअवक बाहर आया और रास्ता रोककर पूछने लगा कि सच-सच बताये कि वह कौन है?युवती ने उसे अपनी सारी कहानी कह सुनाई.युवक पहले से ही उसे चाहने लगा था। उसने उससे पूछा कि क्या वह उससे शादी करेगी? सुकेशी लजा गयी।
सुस्बाह हो गई थी.माँ की नींद खुल चुकी थी। बेटे को एकानुपम सुन्दर लड़की के साथ बात करते देखकर वह अचरज में पद गयी.बेटे ने कहा कि यही है काठ की वह कथौतिया, जो अब उसके घर की बहू बनाकर रहेगी। इतनी सुन्दर और सुशील बहू पाकर माँ का मन खुशी से झूम उठा.उसने कहा- "कैसी कथौतिया? उसका वह रूप तो उस काथा के साथ जल गया। अब तो यह मेरी प्यारी सुकेशी रानी है."तो जैसे उसके भग फायर, वैसे ही सबके फिरें। यह है इस कथा का सार.

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