टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, March 4, 2009

इसे तो फरक पङता है.

एक बुजुर्ग समुद्र के किनारे टहल रहे थे। वहाँ उन्हें एक युवती समुद्र में कुछ फेंकती दिखाई पडी। बुजुर्ग को उत्सुकता हुई यह जानने की की वह क्या फेंक रही है। वे उस युवती के पास पहुंचे। उनहोंने देखा की वह युवती समुद्र की लहर से किनारे आ गई स्टार फिश को उठा-उठा कर दुबारा समुद्र के पानी में फेक दे रही है। बुजुर्ग ने युवती से पूछा की वह ऐसा क्यों कर रही है? युवती बोलीई की वह इन स्टार फिश को उठा उठा कर पानी में फेक रही है। बुजुर्ग ने फ़िर पूछा की इससे उसे क्या फायदा होगा? युवती तनिक मुस्कुराई और बुजुर्ग की और एक कटाक्ष भारी नज़रों से देखती हुई बोली- "मुझे नहीं, मगर इस फिश को लाभ पहुंचेगा।' और यह कहते हुए उसने एक और स्टार फिश समुद्र की लहरों में फेक दी।

2 comments:

Udan Tashtari said...

क्या बात है. काश सब पर पीड़ा को समझे.

अनिल कान्त said...

समीर जी ने बिलकुल सही कहा