एक अशक्त व् वृद्ध व्यक्ति अपने बेटे, बहू और पोते के साथ रहता था। वह इतना अशक्त था की जब वह खाने बैठता तो उसके हाथ हिलाते रहते। हाथ के हिलाने से खाना बिखर जाता। टेबल गंदी हो जाती। कई बार प्लेट टकरा जाती या टूट जाती। खाना भी वह काफी देर तक खाता रहता। बहू को उसके प्लेट का इंतज़ार करना पद्रता। यह सब देख कर बेटे -बहू आपस में खूब चिढ़ते रहते।
एक दिन बहू ने बेटे से कहा, " इस तरह रोज-रोज हमलोगों का खाना ख़राब हो जाता है। तुम ऐसा करो की उनके लिए एक स्टील की थाली ले आओ। उसी में हम इन्हें खाना दिया करेंगे। साथ ही, एक अलग स्टूल बनवा दो, उस पर हम इन्हें खाना दे दिया करेंगे। इससे प्लेट भी नहीं टूटेगी और हमलोगों की टेबल भी गंदी होने से बच जाएगी।
बेटे ने वैसा ही किया। अब बूढा खाता तो बाद में उसकी प्लेट उठानेवाल्ल कोई नहीं रहता। बूढे को ख़ुद ही अपनी प्लेट साफ़ करनी होती।
बूढे का प्रेम अपने पोते पर और पोते का अपने दादा पर बहुत अधिक था। उसने अपने माँ-बाप से दादा जी के साथ ऐसा कराने की वज़ह पूछी। मगर किसी ने भी ढंग से कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि वे उस जवाब को ताल गए। पोते ने कुछ भी नहीं कहा।
दिन बीतते गए। पोते को जब भी माँ-बाप से कुछ पैसे मिलते, वह उसे जमा करता। बेटे की इस जमा कराने की आदत से माँ-बाप बारे प्रसन्न रहते। एक दिन उनहोंने बाते से पूछा की वह इन पैसों का क्या करेगा? बेटे ने जवाब दिया की वह इन पैसों से दो स्टील की थाली खरीदेगा और दो स्टूल बनवाएगा, ताकि जब वे लोग बूढे होंगे तब वह इसी स्टील की प्लेट में इसी स्टूल पर बिठा कर उन लोगों को खाना आदि दिया करेगा।
माँ-बाप को जैसे सौंप सूंघ गया। उस दिन से उनहोंने पिटा को अपने साथ टेबल पर बिठाना शुरू कर दिया। बर्तन भी वही दिए, जिसमें वे सब खाते थे। बहू उनके खाने के ख़त्म होने की राह देखती। बेटा उनके साथ अच्छे से बात कराने लगा।
1 comment:
विभिन्न स्वरूपों में यह कथा बार-बार सुनी और पढी। आज एक बार फिर पढी और उतनी ही अच्छी लगी जिती कि पहली बार पढने पर लगी थी।
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