कहते हें की जब कबीर को ज्ञान हासिल हुआ, तब वे एक गाँव में गए और अपनी बातें कहीं। उनकी बात से सभी प्रभावित हुए। जब वे उस गाँव से लौटने लगे तब सभी ग्रामवासी उनके पीछे हो लिए। कबीर ने जब पूछा तो सबने कहा की उन सबको उनकी बातें इतनी अच्छी लगी हैं की हर कोई उनका अनुयायी होना चाहता है।
कबीर दूसरे गाँव गए। वहाँ भी उनहोंने व्याख्यान दिया। वहां भी सभी उनसे प्रभावित हो कर उनके संग हो लिए। इस तरह से वे गांग-गाँव घूमते और काफिला लंबा डर लंबा होता चला गया।
एक दिन जब वे किसी गाँव से लौट रहे थे तब वे एक दर्रे से गुजरे। वहाँ अँधेरा था। जगह भी संकरी थी। कुछ लोग मारे भय के ठहर गए। कबीर आगे बढ़ते गए, भीड़ कम होती गईउनहोंने सभी को पुकारा। सभी ने कहा की आगे बहुत अँधेरा है। वे सब आगे बढ़ने से लाचार हैं। कबीर और आगे बढे। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, अँधेरा गहराता गया। लोगों की भीड़ भी पीछे और पीछे छूटती गई। अंत में वे एक दम सघन अन्धकार में पहुँच गए। इतना की हाथ को हाथ ना सुझाई दे। कबीर ने सभी को पुकारा। पर अब वहाँ कोई नहीं था। कबीर को केवल अपनी ही आवाज़ गूंजती सुनाई दी। वे अब अकेले आगे बढे। बढ़ते गए। अँधेरा अभी भी उतना ही था। बहुत आगे बढ़ने पर उन्हें प्रकाश की किरण फूटती दिखाई दी। जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते गए, प्रकाश तेज से तेजतर होता गया। वही तेज अब उनके चहरे पर भी आता गया। जो पीछे छूट गए थे, वे पीछे ही रह गए।
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6 comments:
Very big and deep meaning in this small story.
Thanks,
Jayant
अंधेरे में लोग तो क्या अपनी परछाई भी साथ छोड़ देती है। ऐसे में ज्ञान और विश्वास ही प्रकाश की ओर ले जाता है।
प्रेरक!!
बहुत बढिया!! प्रेरक।
अत्यन्त प्रेरक और उल्लेखनीय सन्दर्भ । धन्यवाद ।
sunder kahani
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