टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Monday, April 27, 2009

धार भी तो चाहिए!

एक आदमी खूब मेहनती था, मगर उसके पास का नही था। काफी मेहनत के बाद उसे एक काम मिला लकडियाँ काटने का। काम मिलाने से वह बेहद खुश था। अपना आभार उसने मालिक को इस रूप में दिया की उसने प्राण किया की वह खूब मेहनत करेगा और अपने काम के प्रति पूरी तरह से इमानदार रहेगा।
पहले दिन वह लकडी काटने गया। वह पूरे उत्साह में था। कुल्हाडी भी धारदार थी। उस दिन उसने खूब लकडी काती। वह बेहद खुश था की उसने अपनी नौकरी का सिला मालिक को दिया है। दूसरे दिन वह फ़िर लकडी काटने गया। आज उसने कल की तुलना में कम लकडी काती। फ़िर भी वह संतुष्ट था। अगले दिन उससे और भी कम लकडी कटी। वह तनिक नाखुश हुआ। फ़िर तो यह सिलसिला बनता चला गया। उसके काम में लगातार कमी आती गई। वह अपने -आप से नाराज़ सा रहने लगा। उसे भय भी हुआ की उसके काम की यह गति देख कर मालिक कहीं उसे नौकरी से निकाल ना दें और अगर ऐसा हुआ तो वह एक बार फ़िर से बेकार और बेरोजगार हो जायेगा।
अंत में वह एक दिन मालिक क पास गया और अपनी परेशानी मालिक से कह सुनाई। मालिक ने बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनीं और कहा की " तुम ये बताओ की इस बीच तुमने अपनी कुल्हाडी की धार कब तेज़ की थी? तुम उससे काम तो लगातार लेते जा रहे हो, मगर यह देखने की कोशिश नहीं कर रहे हो की उसकी भी अपनी कोई ज़रूरत है या नही? धार चाहे कुल्हाडी की हो या अपनी मेधा की, उसे लगातार तेज़ करना ज़रूरी है। इससे काम में तेजी भी आती है और नवीनता भी।

2 comments:

admin said...

बिना धार की कुल्हाडी से लकडी काटने वाले अक्सर ही देखने को मिल जाते हैं। उनके लिए प्रेरक कहानी है यह।
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TSALIIM.
-SBA-

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

लकड़हारा नेता रहा होगा...अदूरदृष्टक