एक बार गुरु नानक अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे। एक जगह उनहोंने विश्राम लिया। वहाँ के जमींदार ने उन्हें भोजन पर आमंत्रित kiyaa। गुरु नानक जी ने विनम्रता से मना कर दिया। फ़िर एक गरीब किसान ने आ कर उनसे अपने यहाँ भोजन कराने का आग्रह किया। गुरु नानक जी तुंरत मान गए।
इधर जमींदार अपनी बात की अवहेलना से बहुत नाराज़ हुआ। उसने गुरु नानक को शिष्य समेत पकड़ आने का आदेश दिया। गुरु नानक के पहुँचने पर उसने बड़े क्रोध से उसका आतिथ्य स्वीकार न कराने का कारण पूछ। गुरु नानक ने जमींदार के यहाँ से खाना मंगवाया। फ़िर किसान के यहाँ से भी। कहते हैं की जमींदार के यहाम का खाना के कर उनहोंने निचोडा तो उसमें से खून की धारा बह निकली। अब उनहोंने किसान के यहाँ का खाना निचोडा तो उसमें से दूध की धार बह निकली। गुरु नानक ने कहा की इसीलिए मैंने तुम्हारे यहाँ का भोजन स्विक्कर नहीं किया क्योंकि इसमें ग़रीबों का खून व् हाय मिला हुआ है, जबकि इस किसान की मेहनत मजूरी की रोटी में सच्ची मेहनत और लगन बसी हुई है।
3 comments:
बढ़िया!
घुघूती बासूती
bahut sundar katha
अनगिनत बार पढी हुई यह कहानी कितनी ही बार पढें, हर बार मनुष्यता, सत्विकता, शुचिता और परिश्रम के प्रति आस्था बढाती है।
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