टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, March 18, 2009

भगवान् से भेंट

एक छोटा बच्चा भगवान से मिलना चाहता था। उसे किसी ने बता दिया की भगवान बहुत दूर रहते हैं। एक दिन वह अपने बैग में ढेर सारा खाने-पीने का सामान रखकर भगवान की खोज में चल परा।
रास्ते में उसे एक बगीचा मिला। वह थक गया था। इसलिए उस बगीचे में उसने तनिक आराम कराने और कुछ खा- पी लेने की सोची। वह एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया। उसी पेड़ के नीचे एक युवक भी था। उसके चहरे पर बड़ी असीम शान्ति व् प्रसन्नता खेल रही थी। बच्चा उसकी और देखने लगा। बच्चे को अपनी और देखते पा कर युवक मुस्कुराया। बच्चे को बड़ा अच्छा लगा। वह वहीं बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसने अपने बैग में से खाने का सामा निकाला और युवक की और बढ़ा दिया। युवक ने मुस्कुराते हुए उसे ले लिया। दोनों खाने लगे। फ़िर युवक एक किताब पढ़ने लगा। बच्चे ने भी एक किताब निकाली और पढ़ने लगा। दोनों एक -दूसरे की और बीच-बीच में देखते और मुस्कुरा देते।
दोपहर हो गई। अब युवक ने अपने थैएले में से खाना निकाला, बच्चे को दिया और दोनों खाने लगे। वे खाते जाते और एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराते जाते। खाना ख़त्म होने के बाद दोनों उसी पेड़ के नीचे सो गए। शाम होने पर दोनों उठे। बच्चे ने और युवक ने भी अपने-अपने थैले ऐ खाने-पीने का सामान निकाला, एक दूसरे को दिया और खाने लगे। फ़िर वे एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते। हैरानी की बात थी की सुबह से शाम हो गई, मगर दोनों में से किसी ने भी किसी से बात नहीं की। बस एक दूसरे को चीजें देते रहे और खाते-पीते रहे और मुस्कुराते रहे।
अँधेरा होने पर बच्चा घर को लौटा। आज उसके चहरे पर बड़ा तेज था। माँ ने पूछा की वह कहाँ से आ रहा है? बच्चे ने जवाब दिया की वह आज भगवान से मिलकर आ रहा है। भगवान् बहुत युवा हैं, बहुत अच्छे हैं और सदा हंसते ही रहते हैं। इधर युवक भी घर पहुंचा। आज उसके चहरे पर भी बड़ा तेज़ था। उससे भी उसकी माँ ने पूछा युवक ने जवाब दिया किया आज वह भगवान के साथ था। दोनों साथ रह, साथ-साथ खाया-पीया। साथ-साथ सोये आयुर साथ-साथ ही वहाँ से विदा हुए। केवल एक ही बात प्रमुख रही की भगवान तो बहुत छोटी उमर के हैं, फ़िर भी उसे उनके साथ बड़ा अच्छा लगा।

2 comments:

Mohinder56 said...

जाकि रही भावना जैसी,
तिन देखी प्रभू मूरत वैसी..

सुन्दर प्रकरण.. मन भाया

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा पढ़कर!