टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Tuesday, March 3, 2009

उबले बीज का पौधा

एक कम्पनी के बड़े-बड़े अधिकारियों का सेमीनार चल रहा था। सेमीनार समाप्त होने के बाद कम्पनी के मैनेजर ने सभी सहभागियों को एक-एक बीज दिया और कहा की वे सब वापस जा कर अपने घर के गमले में इसे बो देन और अच्छी तरह से इसकी देखभाल करें। अगले साल हम सब फ़िर यहाँ मिलेंगे और जिसका पौधा जितना अच्छा होगा, उसे पुरस्कार दिया जाएगा।
सभी बीज ले कर आए और सभी ने अपने-अपने घर के गमले में इसकी देख-रेख कराने लगे। साल भर बाद सभी फ़िर से एक जगह एकत्र हुए। सभी अपने-अपने गमले ले कर आए थे। रंग-बिरंगे गमले और उनमें रंग-बिरंगे पौधे और उन पौधों में रंग-बिरंगे फूल।
मैनेजर इन सबको देखा कर बेहद प्रसन्न हुआ। वह सभी गमलों का मुआयना कराने लगे। सभी हरे-भरे और लहलहाते पौधों के बीच उसने एक गमला पाया, जिसमें मिट्टी तो थी, मगर उसमें न तो पौधा था और ना कुछ और। वह अधिकारी जैसे शर्म से काठ हुआ जा रहा था। बिना पौधे का गमला देख बाक़ी सभी सहभागी ठठा कर हंस पड़े। लेकिन यह क्या? मैनेजर ने उसे ही पुरस्कृत कर दिया। बाकी सभी सहभागियों को जैसे काठ मार गया। ज़ाहिर सी बात थी की सभी ने मैनेजर से इसकी वजह पूछी। मैनेजर ने बड़े शांत स्वर में उत्तर दिया की उसने सभी को उबले बीज दिए थे। लिहाजा किसी भी बीज से पौधा निकलना सम्भव नहीं था। लेकिन चूंकि मैंने कहा था, इसलिये सभी ने अपनी- अपनी तरफ़ से एक बीज बो कर उसे गमले में उगा दिया और उसे ले आए। इस अधिकारी ने यह नहीं किया और पूरी इमानदारी से उसानेसाहस के साथ वह इसे सभी के बीच ले भी आया। यह कबूल किया।

8 comments:

Manjit Thakur said...

विभा जी ऐसा साहस अब कम ही बचा है।

Arun Arora said...

अरे हम तो गुड का पेड उगा कर पुरुस्कॄत हो चुके है . लानत भेजिये ऐसे लोगो पर जो उबले बीच को पेड मे नही बदल पाये . क्या ऐसे लोग अभी भी भारत भूमी पर बोझ बने हुये है ?

Anonymous said...

परस्पर सहयोग की भावना।

ghughutibasuti said...

बहुत सुंदर छोटी सी कहानी !
घुघूती बासूती

आशीष कुमार 'अंशु' said...

अच्छी कथा कही आपने ... आगे भी इस तरह के प्रेरक प्रसंग आपके ब्लॉग पर पढ़ने को मिला करेंगे.. विश्वास करते हैं

रंजू भाटिया said...

बहुत बढ़िया लगी यह कहानी ...अब इतनी ईमानदारी नहीं दिखती

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

कथा के माध्यम से बहुत अच्छी बात कह दी आपने........आभार

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा सीख किन्तु क्या ऐसे साहसी अब भी मिलते हैं??