टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Monday, May 4, 2009

लालसाएं- कितनी अनंत?

एक बार एक आदमी किसी गाँव से गुजर रहा था। उसने देखा की एक जगह मिट्टी के कुछ नए बर्तन रखे हुए हैं। उन बर्तनों के पास ही एक खाट बिछी हुई है और उस खाट पर एक आदमी मुंह पर गमछा रखे सो रहा है। बर्तन बेहद ख़ूबसूरत थे।
आदमी ने खाट पर सोये हुए आदमी को जगाते हुए पूछा की क्या ये बर्तन उसके बनाए हुए हैं?
सोये हुए आदमी ने जगाकर उसे ऐसे देखा जैसे वह कितना अहमक सवाल उससे कर रहा है। फ़िर उसने हामी भरते हुए कहा की ये बर्तन उसने बनाये हैं।
आदमी ने फ़िर पूछा- "क्या ये बर्तन बेचने के लिए हैं?"
बर्तानावाले ने फ़िर उसे देखा। उसके चहरे पर वही भाव थे कि कैसा बेवकूफाना सवाल है। फ़िर उसने हां में अपनी गर्दन दुलाई।
आदमी ने फ़िर पूछा, "मगर यहाँ तो तुम्हें इन बर्तनों के ज़्यादा पैसे नहीं मिलते होंगे। तुम ऐसा क्यों नहीं करते कि तुम शहर चले जाओ।"
"इससे क्या होगा?"
"तुम्हें अपने बर्तन के अच्छे दाम मिलेंगे।
:इससे क्या होगा?"
"तुम्हारे पास ज़्यादा पैसे हो जायेंगे।"
"इससे क्या होगा?"
फ़िर तुम उन पैसों से एक बड़ा सा घर खरीद सकते हो।"
"इससे क्या होगा?"
"तुम अपने घर में तरह-तरह के आराम के सरो-सामान रख सकते हो।"
"इससे क्या होगा?"
तुम्हारे पास ज़्यादा पैसे होंगे तो लोग तुम्हें इज्ज़त देंगे, तुम्हारा मान-सम्मान बढेगा।"
"इससे क्या होगा?"
"फ़िर तुम आराम से अपना जीवन सो कर गुजार सकते हो।"
"तो अभी क्या कर रहा हूँ?" आदमी ने जवाब दिया और अपनी चादर तान कर सो गया।

2 comments:

अनिल कान्त said...

ha ha ha ha :)
sahi baat hai

Meri Kalam - Meri Abhivyakti

संगीता पुरी said...

सही कहा .. हमलोग स्‍टेटस बढाने की चिंता में लगे होते हैं .. यह नहीं जानते कि स्‍टेटस वालों को आराम नसीब नहीं होता ।