टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Wednesday, May 6, 2009

कितनी मेहनत?

एक आश्रम में बच्चे विद्या अर्जन किया करते थे। विद्या अर्जन के साथ-साथ उन्हें आश्रम के भी अन्य सारे काम करने होते थे। काम करने के बाद वे सभी छात्र जंगल जाते और वहाँ से सूखे पत्ते चुन कर लाते। रात में वे सब उन सूखे पत्तों को एक-एक कर जलाते और उनके प्रकाश में अपना पाठ याद करते।
उसी आश्रम में एक ऐसा भी छात्र था जो न तो जंगल जाता और न ही सूखे पत्ते चुनता। रात में वह बाक़ी अन्य छात्रों के साथ बैठ कर सूखे पत्ते जला कर पाठ भी याद नहीं करता था। सभी छात्र उसका खूब मज़ाक उडाते और उसे बेवकूफ कहते।
परीक्षा का दिन आया। सभी ने परीक्षा दी। उस छात्र ने भी दी। सभी अन्य छात्रों ने उसकी खूब चुटकी ली। वे सभी इस बात से आश्वस्त थे की वह तो फेल होगा ही होगा।
परीक्षा का परिणाम आया और सभी यह देखकर हैरत में पड़ गए की वह छात्र अव्वल आया है। उसे सर्वोच्च अंक मिले हैं। बाक़ी सभी छात्रों के क्रोध की सीमा नहीं रही। वे सब अपने गुरु जी के पास गए और उस छात्र पर आरोप लगाया की उसने परीक्षा में अवश्य ही कदाचार का उपयोग किया है, इसीलिए उसे सबसे अधिक अंक आए हैं।
गुरु जी ने उस छात्र को बुलाया और पूछा की "तुम्हें सबसे अधिक अंक कैसे आए, जबकि तुम बाकियों के साथ न तो जंगल जाते हो, न सूखे पत्ते चुनकर लाते हो और न ही इन सबके साथ रात में बैठ कर इन सूखे पत्तों के प्रकाश में अपना पाठ ही याद करते हो। और तो और, तुम्हें पढ़ते हुए आज तक किसी ने नहीं देखा है?"
छात्र बोला-"यह सही है की मैं आज तक न तो जंगल गया और न ही जंगल से सूखे पत्ते चुन कर लाया और ना ही कभी रात में बाकियों के साथ बैठ कर सूखे पत्ते के प्रकाश में पाठ ही याद किया। मगर इसका यह मतलब नहीं की मैंने पढाई नहीं की है। भगवान भास्कर दिन भर अपना प्रकाश इस धरती और इस पर के जीव के लिए बिखेरते हैं। वे इस प्रकाश के एवज में किसी से कुछ चाहते भी नहीं। मैंने उनके इस आशीष का उपयोग जंगल में जा कर सूखे पत्ते चुनने के बदले अपने अध्ययन में किया। मैं दिन में ही अपने सारे पाठ याद कर लिया करता हूँ। लोग मुझे पढ़ता हुआ इसलिए नहींं पाते हैं की जिस समय मैं पढ़ता हूँ, ये सभी जंगल में सूखे पत्ते चुन रहे होते हैं। दिन के प्रकाश में पाठ याद भी अच्छी तरह से होता है, इसलिए मुझे सर्वोच्च अंक आए हैं।"
छात्र की बात सुन कर गुरु जी सहित सभी सोच में पड़ गए। सभी ने यह अनुभव किया की यह कह तो सही रहा है। और उस दिन से जंगल जा कर सूखे पत्ते चुन कर लाने और रात में उन सूखे पत्तों को जला कर उनकी रोशनी में पाठ याद कराने की प्रथा समाप्त हो गई।

No comments: