एक अस्पताल में दो मरीज़ भर्ती हुए. एक का बिस्तर खिड़की के पास था. उसे दिन भर में एक बार एक घंटे के लिए बिस्तर पर बैठने की इजाज़त थी. दूसरा मरीज़ सारे समय लेटा रहता था. दोनों मरीजों में बात चीत शुरू हुई और दोनों में दोस्ती हो गई. खिड़की के पास वाला मरीज़ जब बैठता तब वह खिड़की की तरफ मुंह करके बैठता और खिड़की के बाहर के सारे नजारे का वर्णन करता. दूसरा मरीज़ बिस्तर पर लेटा-लेटा यह सब सुनता रहता. उसे यह वर्णन बहुत भाता, इतना कि जब पहलेवाला मरीज़ खिड़की के बाहर के हाल-चाल का बयान करता, तब वह अपनी आँखें बंद कर लेता और अपनी बंद आँखों से उस वर्णन का तसव्वर करने लगता. मरीज़ की बातों में मौसम होता, आस-पास के पेड़, फूल, चिडिया, पशु पक्षी होते. एक दिन उसने एक बारात के जाने का वर्णन किया. दूसरे मरीज़ को बारात के बैंड की आवाज तनिक भी नहीं सुनाई दी, मगर उसने इस पर कुछ भी नहीं सोचा. बस, अपनी आँखें बंद की और बारात की कल्पना में डूब गया.
यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. दूसरा मरीज़ अब काफी बेहतर महसूस कर रहा था. नर्स ने उससे कहा कि अब शायद उसे भी कुछ देर के लिए बैठने की इजाज़त मिल जाये. यह सुन कर वह बड़ा खुश हुआ. उसने सोचा कि अब जब वह बैठ पायेगा, तब वह भी खिड़की के बाहर के सारे नजारे अपनी आँखों से देख पायेगा.
एक दिन सुबह हुई. नर्स जब मरीजों को उठाने आई तो उसने पाया कि पहलेवाला मरीज़ रात में ही सोये में ही चला बसा. दूसरेवाले मरीज़ को बहुत दुःख हुआ. नर्स और उसने मृतक की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की. अस्पताल के कामगार उसके शव को लेकर चले गए. दूसरे मरीज़ ने नर्स से अनुरोध किया कि वह उसे पहलेवाले मरीज़ के बेड पर शिफ्ट कर दे. नर्स खुशी-खुशी मान गई.
दूसरा मरीज़ तसल्ली सकूं था. उसने सोचा कि अब वह अपनी आँखों से बाहर के नजारे देख सकेगा. उसने अपने को कोहनी के सहारे टिकाया और अधलेटे से हो कर उसने खिड़की के बाहर देखा. उसे यह देख कर बड़ा झटका लगा कि वहां से उसे पेड़ - पौधे, चिडिया, फूल आदि कुछ भी नहीं दिखाई दे रहे थे. उन सबके बदले वहां एक उदास, उजाड़ सी दीवाल थी. दूसरा मरीज़ कुछ समझ नहीं पाया. उसने नर्स को बुला कर पूछा कि इस बेड से वह मरीज़ उसे जो रंग-बिरंगे नजारे दिल्हाता था, वे सब अब कहा गए. नर्स को बहुत हैरानी हुई. वह मरीज़ की बात को समझ भी नहीं सकी. मरीज़ ने उसे पहलेवाले मरीज़ की बात बताई. अब तो नर्स को और भी हैरानी हुई. उसने कहा-" इतने सारे वर्णन वह आपको सुनाता था. आर्श्चय है कि वह ऐसा कैसे कर लेता था. वह तो जन्म से ही अंधा था. अब चौकने की बारी दूसरे मरीज़ और आप सबकी है.
Sunday, May 10, 2009
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1 comment:
बेहतरीन भाव लिए हुए है आपकी पोस्ट पढकर एकबारगी तो दुख हुआ और बाद में आकर देखा तो एक बेचारा अंधा व्यक्ति दूसरे को इतने गहरे भाव उफ कुछ भी कहना मुश्किल हो रहा है
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