टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Thursday, May 14, 2009

ज्ञान की कीमत

एक बार एक जहाज काम इंजन बंद पड़ गया. सभी तरह के कामगार आये और सभी ने अपनी तरफ से हर तरह कि कोशिश कर ली, मगर इंजन स्टार्ट नहीं हुआ. अंत में किसी ने कहा कि इस नगर के अंतिम छोर पर एक बूढा रहता है. वह जहाज का विशेषग्य है. उससे दिखाया जाये. संभव है, वह इंजन ठीक कर सकता है.
उस बूढे को बुलाया गया. बूढे ने पूरे जहाज को अच्छी तरह से देखा-परखा. फिर उसने अपने बेग मेंसे एक हथौडा निकाला और इधर-उधर हलके से ठोका. फिर उसने इंजन के पास कि एक जगह को देखा, गहनता से उसका निरीक्षण किया. फिर निशाना साध कर उसने एक भरपूर वार हथौडे का उस जगह पर किया. सबने हैरानी से देख कि इंजन ठीक हो गया और वह काम करने लगा. सभी बड़े प्रसन्न हुए. सभी ने बूढे की जी खोल कर तारीफ की. बूढा वहां से चला गया.
कुछ दिनों के बाद उस बूढे का बिल आया . बिल पर रक़म लिखी थी- १०,०००/- रुपये. जहाज का मैनेजर चौंका- "अरे, इसने ऐसा क्या किया है कि दस हज़ार का बिल थमा दिया है. एक हथौडा ही तो मारा है. उसने बूढे से भी यही बात कही. बूढे ने कहा कि वह अपने बिल को मदवार शुल्क के रूप में भेज तःः है कि किस मद में कितना पैसा उसने लिया है.
मैनेजर के पास दूसरा बिल गया. उसमें बिल का विवरण था-
हथौडा मारने की फीस- रु. १०/-
सही जगह हथौडा मारने की फीस- रु ९९९०/-