टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Monday, November 19, 2007

सामा चकेबा

मिथिला में बहनें भी के लिए एक अद्भुत खेल खेलती हैं। कार्तिक सुदी ५ से इसे खेला जाता है और पूर्णिमा के दिन इसका समापन होता है। महिलाएं व लडकियां एक ग्रुप में इसे हर रात खेलती हैं। इसका पूरा आनंद इसे देखकर व इसमें शामिल होकर ही लिया जा सकता है। यह द्वापर युग की कथा है। आगे इस अवसर पर गाए जानेवाले कुछ गीत भी हम इसमें देंगे)
राजा जाम्बवंत ने अपनी बेटी जाम्बवंती की शादी श्री कृष्ण से की, जिससे उन्हें एक बेटा और एक बेटी हुए। इनके नाम थे- शाम्ब व शाम्बा। शाम्बा का प्रेम चारुक्य नामक युवक से हुआ। चूडक नाम के चुगलखोर ने इसकी शिक़ायत कृष्ण से कर दी। उन्होंने शाम्बा को श्राप दे दिया कि वह चकवी पक्षी बनकर सारे समय आकाश में विचरती रहे। यह देख चारुक्य ने शिव की तपस्या कर के शाम्बा को फिर से मानव रूप का वर माँगा। मगर शंकर ने कहा कि भगवान कृष्ण का श्राप वे नहीं बदल सकते, मगर वे उसे भी चकवा पक्षी बनाकर आकाश में शाम्बा के साथ विचरने का वर दे सकते हैं। वे दोनों अब आकाश में विचरने लगे। आकाश में निरंतर विचरने से उनकी हालत खराब होने लगी। सात भाइयों के पक्षी दल उन्हें दाना उड़ते उड़ते चुगाते और अपनी पीठ पर उन्हें बिठा कर खुद उड़ते रहते।
बहन के इस हाल से शाम्ब बहुत दुखी था। वह वृन्दावन में जाकर भगवान विष्णु की आराधना करने लगा ताकि वह उन दोनों को मनुष्य रूप में वापस ला सके। चूड़क ने वृन्दावन में आग लगा दी। शाम्बा का प्यारा कुत्ता झांझी अब शाम्ब के साथ रहता था। आग लगाते चूड़क का उसने मुँह नोच लिया और मुँह में पानी भर भर कर आग बुझाई।
शाम्ब की तपस्या सफल हुई। पर कृष्ण ने उन्हें अपने राज्य में आने की अनुमति नहीं दी। शाम्ब ने उन्हें राज्य के बाहर एक जुते खेत में ठहराया। उसके स्वागत में गीत गए- साम -चक , साम चक अबिहे हे, जोतला खेत में बैसिहे हे ... शाम्बा और चारुक्य को लोग दुलार से सामा- चकेबा कहने लगे। चकेबा की एक बहन थी- खरलीच। भाई- भाभी को पाकर वह बड़ी प्रसन्न हुई। चूडक को शाम्ब ने श्राप दिया कि उसकी चुगलखोर प्रवृत्ति के कारण लोग उसका मुँह जलाएंगे और समाज में उसे कभी भी सम्मान नहीं मिलेगा।
शाम्ब ने यथा संभव धन धान्य देकर बहन- बहनोई को विदा किया। भाई- बहन के इसी उदात्त प्रेम को इस खेल में व्यक्त किया जाता है।

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