एक गधा और एक खच्चर अपने मालिक का समान अपनी पीठ पर लादकर कहीं ले जा रहे थे। गधा थोड़ा कमजोर था। मैदान से जब चढाई आई, तब अपने सामान के साथ वह आगे नहीं बढ़ पा रहा था। थोड़ी ही देर में वह हांफने लगा। उसने अपने साथी खच्चर से कहा की वह उसका थोडा सा बोझ ले ले। मगर खच्चर ने दो टूक जवाब दे कर उसे साफ़ मना कर दिया। गधा सामान लेकर चलता रहा, मगर अधिक दूर तक वह नहीं जा सका। बोझ की अधिकता और अपनी शारीरिक क्षमता के कारण वह एक जगह पर लड़खडा कर गिर गया और फ़िर उठ ना सका।
खच्चर के मालिक के लिए यह बड़ी मुसीबत आन पडी। इस जगह अब दूसरी सवारी उसे कहाँ मिलेगी? थोड़ी देर तक तो वह सोच-विचार में डूबा रहा और फ़िर उसने एक उपाय किया। उसने गधे की पीठ पर का सारा बोझा खच्चर की पीठ पर लाद दिया। दुगुने बोझ से मारा खच्चर सोच रहा था की काश, उसने गधे की बात पहले मान ली होती तो यह दूना बोझ उसे उठाना तो ना पङता।
Wednesday, February 18, 2009
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3 comments:
एक नैतिक संदेश देती कहानी.धन्यवाद.
giaanvardhk kahani ke liye dhanyvaad
sachha sandes bahut achhi kahani
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