Monday, February 16, 2009
दुःख की साझेदारी
एक छोटी सी बच्ची घर बहुत देर से पहुँची। घबराई हुई माँ ने बच्ची को डांटा और पूछा की वह अबतक कहाँ थी? माँ ने अपनी परेशानी और चिंता जतायी की उसके घर न लौटने से वह कितनी डर गई थी। बच्ची ने कहा की रास्ते में एक बूढे दादा साइकिल चलाते हुए आ रहे थे की उनकी साइकिल किसी से टकरा गई। वे गिर गए और उनकी साइकिल भी टूट गई। माँ ने फ़िर बच्ची को झिड़का की क्या तुझे साइकिल बनाने आती है क्या की तू वहां रुक गई। बच्ची ने जवाब दिया की नहीं, में तो उस बूढे दादाजी के पास थी। माँ ने फ़िर पूछा की वह वहांक्या कर रही थी? बच्ची बोली की वह बूढे दादा की उंगली पकरकर उसे सड़क के किनारे ले आई थी। उन्हें बिठाया था और अपने पानी की बोतल से उन्हें पानी पिलाया था। फ़िर जबतक उनकी साइकिल मरम्मत हो कर नहीं आ गई, तबतक वह उनसे बात कर रही थी। माँ अब गुस्सा न कर सकी। उसने लपक कर अपनी बच्ची को गोद में भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगी।
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5 comments:
achchha lagaa.
बहुत प्रेरक।
इतनी व्यस्त जिंदगी में बस बचपन तक ही तो रह जाता है ....आजकल किसी के दुख में शामिल हो पाना।
प्रभावशाली लेख!
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
ग़ज़लों के खिलते गुलाब
बहुत बढिया.
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