टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Friday, May 30, 2008

भेड़िया आया - नई व्याख्या

आप सभी यह कहानी जानते हैं कि भेड़ चरानेवाला बालक भेड़ च्हराते समय शैतानी की सोचता। वह 'भेडिया आया, भेडिया आया' कहकर चिल्लाता। पूरा गाँव वहां उसकी जान बचाने के लिए दव्द पङता। सभी को अपने सामने पाकर उनकी बेवकूफी पर वह खूब हंसता। गाँव के लोग मुंह बनाकर चले जाते। ... और एक दिन ऐसा हुआ कि सचमुच भेडिया आया। उस दिन वह बालक सच में खूब-खूब चिल्लाया, मगर आज उसकी आवाज़ सुनकर कोई नहीं आया। सबने यही समझा कि अआज भी उसे बुद्धू बनाया जा रहा है। भेडिया ने लडके को खा डाला।
-नीति इस कथा की यह है कि झूठ मत बलों।
अब आज के बच्चे हमारे- आपकी तरह नहीं हैं। अपनी व्याख्या देना उन्हें अच्छी तरह से आता है। सुनिए इस कहानी कि अलग-अलग व्याख्या तीन अलग-अलग क्षेत्र में रह रहे तीन बच्चों से।
बच्चा १ इस कहानी को सुनकर बोलता है- " बच्चे की जान तो नाहक गई। पनिश तो उसके मालिक को करना चाहिए था। क्या उसे पता नहीं कि यूएन द्वारा चाइल्ड लेबर पर बैन लग चुका है?"
बच्चा-२- " बिचारा बच्चा। जबतक झूठ बोलता रहा, लोग उसके पास आते रहे। जिंदगी में एक बार सच बोला तो उसे अपनी जान से हाथ धोना पडा । अब ऐसे में आप कहते हैं कि सदा सच बोलना चाहिए? अब आप ही बताइये कि झूठ बोलकर मैं खेलू-कूदूं, मौज मस्ती मनाउऊँ या सच बोलकर जान गवाऊँ?"
बच्चा ३- सब षडयंत्र है। उस बच्चे के ख़िलाफ़। सबने मिलकर उस बच्चे को मार डाला। अगर पहली ही बार में उसकी बात को गंभीरता से ले लिया जाता और सोचा जाता कि यस, एक दिन ऐसा भी कुछ हो सकता है तो यह नौबत ही नहीं आती। "
मुझे याद आ गई अपनी दोनों बेटियां। बड़ी ने प्रेंचंद की 'कफ़न' पढ़ा कर मुंह बिच्काते हुए कहा था कि निकम्मे लोगों पर कथा लिखा कर कौन सा बहादुरी का काम कर लिया गया है? कामचोर की सहायता कोई क्यों करे। They deserve it."
छोटी 'फूल की अभिलाषा' कविता पर बोली थी, "यह फूल की नहीं, कवि की अपनी अभिलाषा है। आज हर कोई अच्छे से रहना चाहता है। फूल के मुंह होता तो वह कहता कि उसे रास्ते पर नहीं, किसी भी अच्छी जगह जाना है, जहाँ लोग उसकी देख भाल करें, उसे पाकर लोग खुश हों।"
यह आजकल के बच्चों की दुनिया है, उंके लोक का, उनके विजन का, उनकी सोच का विस्तार है। इसका सम्मान भी हमें करना हूगा और अपनी संस्क्र्ती और मूल्यों का संरक्षण भी।

2 comments:

कुश said...

बड़ी दिलचस्प व्याख्या है ये तो..

Udan Tashtari said...

तीनों ही व्याख्यायें मजे की हैं. बच्चों की मासूमियत तो फिर भी झलक ही रही है. बढ़िया.