टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Tuesday, July 15, 2008

चम्पाकली

आज अपना नाटक 'अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो' पर काम कर रही थी। उसमें प्रयुक्त यह लोक कथा याद आ गई। विषय बहुत ही संवेदनशील होने के कारण हर बार मन ख़राब हो जाता है। मनुष्य की वासना उसे कहाँ-कहाँ ले जाती है, यह नाटक का कथ्य है, जिसे आधार देने के लिए इस लोक कथा को उसमें दिया गया है। कथा है-
"राजा की अनिन्द्य सुंदर बेटी चम्पाकली पर उसके ही सगे भाई की नज़र थी और वह उसे हर हाल में पाना चाहता है। एक दिन जब चम्पाकली महल में नहीं थी, राजकुमार उसकी पसंद का एक जंगली फल- भटकोयें, महल के ताखे पर रखवा देता है और मुनादी करवा देता है कि जो भी इन फलों को खाएगा, राजकुंमार का विवाह उसी के साथ होगा। ननिहाल से लौटने पर चम्पाकली उन फलों को देखा कर खुश हो जाती है और उन्हें खा लेती है। पुत्र -मोह में पड़कर राजा चम्पाकली का ब्याह राजकुमार से कराने को राजी हो जाते हैं। रानी के विरोध का इस पुरूष -प्रधान समाज में कोई स्थान है नहीं। राजा यह ताकीद भी करा देता है कि चम्पाकली को यह पता तो चले कि उसका ब्याह हो रहा है, मगर यह नहीं कि किसके साथ हो रहा है। जान के डर से सभी चुप थे। चम्पाकली असहज अनुभव कर रही थी। वह सबसे पूछती कि उसकी शादी से लोगों के चहरे पर खुशी क्यों नहींं है? लोग कुछ-कुछ बहाने बना कर वहाँ से टाल जाते। एक दिन तोता-मैना का एक जोड़ा दाना चुगने वहाँ पहुंचता है। मैना तोते को आगाह करती हुई कहती है कि ऐसे अनाचारी राजा के यहाँ का दाना चुगना नर्क में जाने से भी बदतर है, जहाँ सगे भाई- बहन में शादी करवाई जा रही हो। चम्पाकली यह सुन स्तब्ध रह जाती है। अगले ही दिन उसका ब्याह होनेवाला था। वह उसी रात अपने सारे गहने -कपडे पहन नदी घाट जाती है, नाव खोलकर बीच धार पहुँच जाती है। मल्लाह भागा-भागा राजा को ख़बर करता है। राजा, रानी, राजकुमार सभी उसे लौट आने को कहते हैं। मगर चम्पाकली कहती है कि वह कैसे लौट सकती है उस घर में, जहाँ उसके पिता उसके ससुर, उसकी माता उसकीसास और उसका अपना भाई ही उसका पति बननेवाला है। और वह नदी में डूब कर अपने प्राण दे देती है।"
कथा यहाँ समाप्त होती है, मगर आज यह वहशी प्रवृत्ति बड़ी तेजी से फ़ैल रही है, जिसमें अपने ही नज़दीकी रिश्तेदारो, पड़ोसियों आदि की हवस का शिकार बच्चियां बनती हैं। क्या हम उन्हें यह सिखाएं कि समाज में, घर में किसी पर यकीन ना करो। और vishvaas से रहित इस धरती पर क्या कोई जी सकता है?

1 comment:

Udan Tashtari said...

बच्चों को अच्छे बुरे का भेद समझायें और आसपास के वातावरण से सजग रहने का तरीका. अभी मानवता से पूरी तरह विश्वास उठना बाकी है.