टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Friday, March 21, 2008

होली में राम-सीता

कल होली है, मगर धन्य भाग हमारे कि मीडिया, अखबार और अब नेटबार ने हम सबको कई दिन पहले से ही रंग में सराबोर कर रखा है। मिथकीय रूप में होली के प्रसंग में कृष्ण और राधा की ही होली दिखती है। मथुरा वृन्दावन भी होली के 'बरसाने' वाले रंग से भीगे रहते हैं।
मिथिला तो सीता की भूमि है, इसलिए यहाँ पर राम-सीता की होली ना हो, ऐसे कैसे हो सकता है ? तो ये फगुआ है, राम-सीता पर-
कंहवा ही राम जी के जन्म भयो हरी झूमरी
अब कंहवा ही बाजे ले बधाई खेलब हरी झूमरी
अजोधा में रामजी के जन्म भयो हरी झूमरी
अब मिथिला में बाजे ले बधाई खेलब हरी झूमरी
चिठिया ही लिखी-लिखी रामजी भेजाबे हरी झूमरी
अब सखी सभ करू न सिंगार, खेलब हरी झूमरी
किनकर हाथ मे बून्टबा , हरी झूमरी
अब किनकर हाथे अबीर, खेलब हरी झूमरी
रामजी के हाथ में बून्टबा, हरी झूमरी
अब सीता के हाथे अबीर, खेलब हरी झूमरी
उड़त आबे ले बून्टबा, हरी झूमरी
अब chamakat aabe अबीर, खेलब हरी झूमरी

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