एक आदमी काम की तलाश मी था.काम खोजते-खोजते वह एक किसान के यहाँ पहुंचा और उससे काम माँगा.किसान बडा दुष्ट था.उसे आदमी चाहिऐ था, मगर बिना पैसे खर्च किये.मुफ्त मी मिल जाए, फिर बाट ही क्या।
किसान ने आदमी से कहा की फिलहाल उसे काम के लिए आदमी की ज़रूरत नहीं है, लेकिन चूंकि वह इतनी दूर से आया है, इसलिए वह उसे काम पर रख लेगा और मजूरी में उसे रोजाना भर पत्ता भोजन दिया करेगा.आदमी गरीब था और उसे काम की ज़रूरत थी, इसलिए उसने किसान कहा मान लिया।
दूसरे दिन किसान ने उससे खूब काम करवाया.खाने के समां उसने इमली का पत्ता मंगाया और उसपर खाना परोसा.आदमी यह देखकर हैरान.किसान ने कहा की मैंने तुम्हे भर पत्ता भोजन देने की बाट कही थी। इसमें कमी होने पर बताओ.अब रोज ऐसा होने लगा.आदमी की जान निकालने लगी.उसने एक उपाय सोचा।
दूसरे दिन खानेके लिए बैठने पर उसने केले का पूरा पत्ता बिछाया। किसान उसमे थोडा सा भात परोस कर जाने लगा.आदमी ने कहा की आपने भर पत्ता भोजन देने की बाट कही है। अब आप इस पत्ते को भारी.वादे के मुताबिल किसान को यह करना पड़ा.आदमी के अब मेज़ हो गए.वह भर पेट खाता और बचा हुआ खाना गरीबों में बाँट देता.किसान को यह भारी पड़ने लगा। अंत में उसने आदमी से माफी मांगी और उसे सही पगार पर अपने यहाँ काम पर रख लिया.
Monday, October 22, 2007
Tuesday, October 2, 2007
व्यावहारिक ज्ञान
अलग अलग देशों के चार लडके पढने मे बडे तेज़ थे और हमेशा पढने मे यकीं रखते थे। इसलिए वे चारो काशी गए और उस समय के सबसे बडे गुरू से पढना आरम्भ किया। १२ साल तक पढने के बाद वे सभी अपने अपने देश की ओर लॉट चले। सभी विद्या पाने के अभिमान से चूर थे। इन सभी ने किताब्बी ज्ञान ख़ूब प्राप्य किया था, लेकिन जीवन के ज्ञान से ये सब कोसों दूर थे।
रास्ते मे इन सभी को कुछ हड्डियाँ इधर-उधर बिखरी मिली। ये सभी शास्त्रार्थ कराने लगे, यानी किताबी ज्ञान के आधार पर अपनी अपनी बाते बताने लगे। एक ने कहा, मैं हड्डी का जानकार हूं इसलिए दावे के साथ कह सकता हू की ये हड्दियाम, शेर की हैं। दूसरे ने कहा की मैं त्वचा का माहिर हूँ, इसलिए इसकी हड्डियों पर खाल चढ़ा सकता हू। तीसरे ने कहा की मैं आवाज़ का एक्सपर्ट हूँ, इसलिए इसे आवाज़ दे सकता हू। चौथे ने कहा की मैं पुनर्जीवन विद्या सीखी है इसलिए इसमें जान फूंक सकता हूँ।
सभी अपनी अपनी विद्या अजमाने लगे। पहले ने सभी हड्डियों को जोड़कर शेर का ढांचा खड़ा कर दिया। दूसरे ने उसपर खाल चढ़ा दी। तीसरे ने उसमें अव्वाज़ भर दी और चौथे ने उसमें जान फूंक दी। बस अब एक भयानक गर्जन के साथ शेर उठाकर खडा हुआ। वह बेहद भूखा था और अपने सामने इतने अच्छे शिकार को देख कर तुरंत उन पर टूट पड़ा और सभी को पाकर कर खा गया।
इसलिए कहा जाता है की जीवन में किताबी ज्ञान से बढ़कर व्यावहारिक ज्ञान ज़रूरी है।
रास्ते मे इन सभी को कुछ हड्डियाँ इधर-उधर बिखरी मिली। ये सभी शास्त्रार्थ कराने लगे, यानी किताबी ज्ञान के आधार पर अपनी अपनी बाते बताने लगे। एक ने कहा, मैं हड्डी का जानकार हूं इसलिए दावे के साथ कह सकता हू की ये हड्दियाम, शेर की हैं। दूसरे ने कहा की मैं त्वचा का माहिर हूँ, इसलिए इसकी हड्डियों पर खाल चढ़ा सकता हू। तीसरे ने कहा की मैं आवाज़ का एक्सपर्ट हूँ, इसलिए इसे आवाज़ दे सकता हू। चौथे ने कहा की मैं पुनर्जीवन विद्या सीखी है इसलिए इसमें जान फूंक सकता हूँ।
सभी अपनी अपनी विद्या अजमाने लगे। पहले ने सभी हड्डियों को जोड़कर शेर का ढांचा खड़ा कर दिया। दूसरे ने उसपर खाल चढ़ा दी। तीसरे ने उसमें अव्वाज़ भर दी और चौथे ने उसमें जान फूंक दी। बस अब एक भयानक गर्जन के साथ शेर उठाकर खडा हुआ। वह बेहद भूखा था और अपने सामने इतने अच्छे शिकार को देख कर तुरंत उन पर टूट पड़ा और सभी को पाकर कर खा गया।
इसलिए कहा जाता है की जीवन में किताबी ज्ञान से बढ़कर व्यावहारिक ज्ञान ज़रूरी है।
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