टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Monday, October 22, 2007

भर पत्ता भोजन

एक आदमी काम की तलाश मी था.काम खोजते-खोजते वह एक किसान के यहाँ पहुंचा और उससे काम माँगा.किसान बडा दुष्ट था.उसे आदमी चाहिऐ था, मगर बिना पैसे खर्च किये.मुफ्त मी मिल जाए, फिर बाट ही क्या।
किसान ने आदमी से कहा की फिलहाल उसे काम के लिए आदमी की ज़रूरत नहीं है, लेकिन चूंकि वह इतनी दूर से आया है, इसलिए वह उसे काम पर रख लेगा और मजूरी में उसे रोजाना भर पत्ता भोजन दिया करेगा.आदमी गरीब था और उसे काम की ज़रूरत थी, इसलिए उसने किसान कहा मान लिया।
दूसरे दिन किसान ने उससे खूब काम करवाया.खाने के समां उसने इमली का पत्ता मंगाया और उसपर खाना परोसा.आदमी यह देखकर हैरान.किसान ने कहा की मैंने तुम्हे भर पत्ता भोजन देने की बाट कही थी। इसमें कमी होने पर बताओ.अब रोज ऐसा होने लगा.आदमी की जान निकालने लगी.उसने एक उपाय सोचा।
दूसरे दिन खानेके लिए बैठने पर उसने केले का पूरा पत्ता बिछाया। किसान उसमे थोडा सा भात परोस कर जाने लगा.आदमी ने कहा की आपने भर पत्ता भोजन देने की बाट कही है। अब आप इस पत्ते को भारी.वादे के मुताबिल किसान को यह करना पड़ा.आदमी के अब मेज़ हो गए.वह भर पेट खाता और बचा हुआ खाना गरीबों में बाँट देता.किसान को यह भारी पड़ने लगा। अंत में उसने आदमी से माफी मांगी और उसे सही पगार पर अपने यहाँ काम पर रख लिया.

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