टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Saturday, June 7, 2008

नई व्याख्या- साधू व बिच्छू

आपको पाता है, एक साधू जब नदी में स्नान कर रहे थे तो एक बिच्छू को पानी में बहते देखा। स्वभाववश उनहोंने उसे हथेली में उठाकर बाहर निकालने लगे। बिच्छू ने भी अपनी आदतावश उन्हें कत खाया। दर्द से तिलमिलाकर साधू के हाथ से बिच्छू गिर गया। फ़िर तो यह कई बार चला। कई डंक के बाद आख़िर में साधू उसे बाहर निकालने में सफल हो गए।
एक व्यक्ति यह देख रहा था। उसने साधू से पूछा, "आपने यह क्यों किया?" साधू ने कहा, "अपने -अपने स्वभाव से लाचार हम दोनों ने वही किया, जो हमें करना था ।"
व्यक्ति बोला-"अब ज़माना यह नही है। सोचिये, एक खतरनाक जीव को बचाने में आपकी इतनी मेहनत गई, समय गया और उसके बाद वह और भी खतरनाक पीढियों को जन्म देगा। ऐसे ही लोग इस दुनिया के लिए खतरनाक होते हैं"
आदमी ने शोर माछ कर लोगों को इकट्ठा किया और साधू पर इल्जाम लगाया कि इसने खतरनाक किस्म के प्राणियों को बचायाहाई जिससे हम सबके जीवन को खतरा है।"
भीड़ उन्मादी होती है। भीड़ का कोई विवेक नही होता। भीड़ ने साधू को मार डाला। यह नही पूछा कि आख़िर साधू ने ग़लत किया क्या था?