टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Tuesday, February 24, 2009

बिटिया और धरती

दिन भर के काम के बाद थकी हुई एक माँ ने थोड़ी देर आराम करने की सोची। वह बिस्तर पर लेती ही थी कि उसकी नन्हीं बिटिया दौड़ती हुई आई और कहने लगी कि वह उसे एक कहानी सुनाये। माँ ने कहा कि वह अभी बेहद थकी हुई है, वह उसे थोड़ी देर बाद कहानी सुनाएगी। मगर बिटिया ने जिद पकड़ ली कि वह उसे अभी और अभी कहानी सुनाये। माँ बेहद थकी हुई थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह उठे और अपनी प्यारी बिटिया को कहानी सुनाये। साथ ही वह यह भी नहीं चाहती थी कि कहानी न सूना कर अपनी बिटिया को नाराज़ कर दे। उसने एक उपाय सोचा। उसने एक पत्रिका का एक पन्ना फाडा, जिसके ऊपर पृथ्वी की तस्वीर थी। माँ ने उस पन्ने के अनेक तुकडे कर दिए और उसे बिटिया को देते हुए कहा कि वह पहले इन सभी टुकडों को जोड़े, फ़िर वह कहानी सुनाएगी।
माँ ने सोचा कि यह कठिन काम होगा और बिटिया को इसमें वक़्त लगेगा। इस बीच वह भी अपनी कमर सीधी कर लेगी। परन्तु यह क्या। मुश्किल से कुछ पल बीते होंगे कि बिटिया बोला पडी- "माँ, मैंने धरती जोड़ दी।" माँ को बड़ी हैरानी हुई। उसने देखा कि बिटिया ने सच्मुअच सारे तुकडे जोड़ दिए हैं। उसने पूछा कि इतनी ज़ल्दी उसने कैसे जोड़ दिया? "बहुत आसानी से", बिटिया ने जवाब दिया, " इस पन्ने के पीछे एक छोटी बच्ची की तस्वीर थी। मैंने उस बच्ची की तस्वीर जोड़ दी, बस धरती अपने-आप जुड़ गई।

Wednesday, February 18, 2009

गधा और खच्चर

एक गधा और एक खच्चर अपने मालिक का समान अपनी पीठ पर लादकर कहीं ले जा रहे थे। गधा थोड़ा कमजोर था। मैदान से जब चढाई आई, तब अपने सामान के साथ वह आगे नहीं बढ़ पा रहा था। थोड़ी ही देर में वह हांफने लगा। उसने अपने साथी खच्चर से कहा की वह उसका थोडा सा बोझ ले ले। मगर खच्चर ने दो टूक जवाब दे कर उसे साफ़ मना कर दिया। गधा सामान लेकर चलता रहा, मगर अधिक दूर तक वह नहीं जा सका। बोझ की अधिकता और अपनी शारीरिक क्षमता के कारण वह एक जगह पर लड़खडा कर गिर गया और फ़िर उठ ना सका।
खच्चर के मालिक के लिए यह बड़ी मुसीबत आन पडी। इस जगह अब दूसरी सवारी उसे कहाँ मिलेगी? थोड़ी देर तक तो वह सोच-विचार में डूबा रहा और फ़िर उसने एक उपाय किया। उसने गधे की पीठ पर का सारा बोझा खच्चर की पीठ पर लाद दिया। दुगुने बोझ से मारा खच्चर सोच रहा था की काश, उसने गधे की बात पहले मान ली होती तो यह दूना बोझ उसे उठाना तो ना पङता।

Tuesday, February 17, 2009

सहारा

एक बार शारीरिक व् मानसिक रूप से अपांग बच्चों के लिए १०० मीटर दौड़ की स्पर्धा आयोजित की गई। ११-१२ बच्चे उसमें शामिल होने के लिए आए। बन्दूक दागकर स्पर्धा की शुरुआत की गई। सभी बच्चे दौड़ पड़े। उनमें से एक बच्चा गिर गया। फ़िर वह किसी तरह उठा और दौड़ने लगा। कुछ दूर जाने के बाद वह फ़िर से गिर गया। फ़िर वह हिम्मत करके उठा और दौड़ने लगा। कुछ दूर तक दौड़ने के बाद फ़िर से वह गिर पडा। अबकी वह उठ नहीं सका और जोर-जोर से रोने लगा। उसके रोने की आवाज़ आने पर दौड़ते हुए सभी बच्चे एक बारगी रुक गए। उन सबने आवाज़ की तरफ़ नज़र घुमाई। वे कुछ तय नहीं कर पाये की क्या करना चाहिए की तभी इंस्ट्रक्टर की सीती बजी और वे सभी दौड़ पड़े। मगर मानसिक रूप से अपांग एक बच्ची उस बच्चे तक आई। उसने उस बच्चे का हाथ थामा और हाथ पकड़कर उसे उठाया। फ़िर वह उसका हाथ पकरकर उस बच्चे की गति से दौड़ने लगी और अन्तिम पड़ाव तक उस बच्चे के साथ दौड़ती वहाँ पहुँची। इस बीच उसने एक बार भी उस बच्चे का हाथ नहीं छोडा। दर्शक दीर्घा से देख राझे दोनों ही बच्चों के माता- पिटा की आंखों से आंसू की अविरल धार बह रही थी।

Monday, February 16, 2009

दुःख की साझेदारी

एक छोटी सी बच्ची घर बहुत देर से पहुँची। घबराई हुई माँ ने बच्ची को डांटा और पूछा की वह अबतक कहाँ थी? माँ ने अपनी परेशानी और चिंता जतायी की उसके घर न लौटने से वह कितनी डर गई थी। बच्ची ने कहा की रास्ते में एक बूढे दादा साइकिल चलाते हुए आ रहे थे की उनकी साइकिल किसी से टकरा गई। वे गिर गए और उनकी साइकिल भी टूट गई। माँ ने फ़िर बच्ची को झिड़का की क्या तुझे साइकिल बनाने आती है क्या की तू वहां रुक गई। बच्ची ने जवाब दिया की नहीं, में तो उस बूढे दादाजी के पास थी। माँ ने फ़िर पूछा की वह वहांक्या कर रही थी? बच्ची बोली की वह बूढे दादा की उंगली पकरकर उसे सड़क के किनारे ले आई थी। उन्हें बिठाया था और अपने पानी की बोतल से उन्हें पानी पिलाया था। फ़िर जबतक उनकी साइकिल मरम्मत हो कर नहीं आ गई, तबतक वह उनसे बात कर रही थी। माँ अब गुस्सा न कर सकी। उसने लपक कर अपनी बच्ची को गोद में भर लिया और उसे बेतहाशा चूमने लगी।

Sunday, February 1, 2009

बुरा जो देखन मैं चला

एक बार द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा की वह किसी अच्छे व्यक्ति को लेकर आयें। दुर्योधन ने पूरी धरती छान मारी, लेकिन उसे एक भी अच्छा व्यक्ति न मिला। द्रोणाचार्य ने अब युधिष्ठिर से कहा की वह किसी बहुत बुरे व्यक्ति को खोज कर लाये। युधिष्ठिर ने भी पूरी धरती छान मारी, लेकिन उसे भी एक भी बुरा व्यक्ति न मिला।
गुरु ने कहा, की अछा व् बुरा व्यक्ति अपने ही मन में होता है। जिसकी जैसी भावना रहती है, वह अन्य को उसी भाव से देखता है। संत कबीर ने भी कहा है-
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिल्या कोई,
जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय।"