टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Friday, February 19, 2010

पेंसिल और आदमी

पेंसिल बनानेवाले ने पेंसिल से कहा- "तुम्हारा जीवन एक नई दिशा की ओर जानेवाला है. इसलिए 5 बातें याद रखना-
1  जीवन में तुम कुछ भी महान कर सकते हो. अर्थात कोई भी महान रचना तुम्हारे द्वारा लिखी जा सकती है. इसलिए अपनी सामर्थ्य पहचानो.
2  कठिन धारदार रास्तों से तुम्हें गुजरना होगा. अर्थात, लोग तुम्हारी धार तेज करने के लिए तुम्हें छीलेंगे.
3  तुम्हारे भीतर गलत को सही करने की क्षमता है.
4   लो तुम मूल रूप में हो, अपने आप को वही बना कर रखना है, इसी में तुम्हारी पहचान है. नकल या दूसर यह है, मैं क्यों नहीं वाली भावना तुम्हें कहीं का भी नहीं छोडेगी.
5   हर हालत में लिखना है, सुन्दर और बेहतर लिखते हुए अपनी छाप छोडनी है.

पेंसिल जब आदमी के पास आया, तब उसने आदमी से कहा-
1  अपने-आपको दूसरों को सौंपो. देव और दानव दोनों एक साथ ही रहते हैं. अपना चुनाव करके रखो.
2  तप रहे हैं, हम भी, तुम भी. मैं भी छीला जा रहा हूं, तुम भी कठिन हालात से गुजर रहे हो. इनका सामना करो.
3  गलतियां सभी से होती हैं. सुधार लेनेवाले आगे बढ जाते हैं.
4   मुखौटों से अलग रहें. जो भीतर से हैं, वही बाहर से भी बने रहें तो आपकी पहचान एक अलग रूप में हो सकेगी.
5  जहां भी जायें, अपने निशान ऐसे छोडकर जाएं कि लोग उसका अनुसरण करें.

और अंत में, हर कोई एक पेंसिल के समान है.

Thursday, February 18, 2010

कांकड-कांकड चुनि लयो, हीरा दिया गंवाय!

एक आदमी जीवन से बहुत निराश था. उसे सभी सुख की चाहना थी. दुख की वह कल्पना भी नहीं कर पाता था. ज़ाहिर है, दुनिया में सभी को सभी सुख नहीं मिल पाते हैं. मगर आदमी इसे समझने से इंकार करता था. एक दिन अपनी निराशा में वह नदी किनारे बैठा था और अनमने भाव से अपने आस-पास की कंकडी, पत्थर आदि को उठा उठा कर नदी में फेंकता जा रहा था. नदी किनारे बैठे-बैठे शाम होने लगी तो वह वापस जाने के लिए उठा. तभी उसकी नज़र अपने आस-पास की कंकडी, पत्थर आदि की ओर गई, जिसी वह सुबह से उठा-उठा कर नदी में फेंक रहा था. उसने देखा कि जो कंकडी, पत्थर आदि वह नदी में फेंक रहा है, दर असल वे कंकडी, पत्थर नहीं, हीरे, मोती व अन्य बहुमूल्य पत्थर थे. आदमी बहुत पछताया, फिर से अपनी मूर्खता पर दुखी हुआ. अपनी भूल सुधारने के लिए वह उसी दम नदी में उतरा और डुबकी लगा लगा कर पानी से कंकडी, पत्थर आदि वापस निकालने की कोशिश करने लगा. शाम से सुबह हो गई. सुबह के झुटपुटे में उसने पाया कि उसने शाम को साफ सुथरे छोडे नदी के तट को शाम से फेंके गए नदी के कीचड से गन्दा कर दिया है. गन्दगी तो चारो ओर फैल गई थी, मगर उसमें से उसे एक भी हीरा, मोती या अन्य बहुमूल्य पत्थर  नहीं मिला.
हम क्या करते हैं? बाहर की अच्छाइयों को अस्वीकार करते रहते हैं और मन की बुराइयों को बाहर निकालते रहते हैं और ऊपर से दुखी भी होते रहते हैं.

Wednesday, February 17, 2010

दाग़ ?

एक बच्चा था, बेहद गुस्सैल. गुस्से में वह कुछ भी कर डलता. एक दिन उसके पिता ने उससे कहा कि इतना गुस्सा उसी के लिए हानिकारक है. बच्चे ने कहा कि गुस्सा कम करने के लिए वह कया करे? पिता ने उसे ढेर सारी कीलें दीं और कहा कि जब जब तुम्हें गुस्सा आये, तुम ये कील किसी पेड पर ठोक आना. बच्चा वैसे ही करने लगा. लेकिन कील ठोकने में उसे मेहनत लगती. फिर उसे यह काम व्यर्थ नज़र आने लगता. इसका असर यह हुआ कि धीरे धारे उसका गुस्सा कम होने लगा. एक दिन उसकी सारी कीलें खत्म हो गई. वह पिता के पास पहुंचा और बोला कि उसका गुस्सा उसके पास की कीलों की तरह समाप्त हो गया है.
पिता ने कहा कि अब वह एक काम और करे कि उसने जो कीलें पेडों में गाडी हैं, उसे निकाल निकाल कर ले आये. बच्चा करने लगा, पर उसने पाया कि इसमें तो कील ठोकने से भी अधिक मेहनत और समय लग रहा है. अब उसे अफसोस आने लगा कि यदि उसने गुस्सा नहीं किया होता तो उसे यह सब नहीं झेलना पडता. फिर भी किसी किसी तरह से उसने कुछ कीलें निकालीं और पिता के पास पहुंचा. पिता उसे लेकर पेड के पास आये और बोले- "गुस्सा करने से किसी को कुछ हासिल नही होता. गुस्सा करने से मन पर इसी तरह से कील के ठुंकने का अहसास होता है. गुस्से की भरपाई इसी कील को निकालने की तरह दुखदाई होती है. गुस्सा निकल भी जये, मगर कील निकालने के बाद के जो दाग पेड पर बने रह गये हैं, वे कभी भी नहीं निकलेंगे. मन में भी यही दाग़ बना रह जाता है."
बच्चे की समझ में बात आ गई. हमारी समझ में? रहिमन भी तो  कह गये है-
"रहुमन धागा प्रेम का, मत तोडो चटकाय
तोडे से फिए ना जुडे, जुडे गांठ पड जाये.

सबसे आसान रास्ता-नशा!

एक बार शैतान एक आदमी के पास पहुंचा और उससे बोला- "तुम नशा कर लो." आदमी ने मना कर दिया कि वह नशा नहीं करता. शैतान ने कहा कि "अगर तुम यह नहीं कर सकते तो अपनी बीबी की पिटाई कर डालो." आदमी ने गुस्से से कहा कि "वह यह कैसे कर सकता है? वह क्यों बिना वज़ह अपनी बीबी को मारे?" शैतान ने कहा कि "अगर तुम यह भी नहीं कर सकते तो अपने मां-बाप को गालियां दे दो." आदमी और भी गुस्सा हो गया और  उसने कहा कि "अपने आदरणीय माता-पिता को वह गाली कैसे दे सकता है?"  शैतान ने कहा कि "अगर तुम यह भी नहीं कर सकते तो अपने दोस्त की हत्या  ही कर आओ." आदमी के गुस्से का पारावार न  रहा. उसने कहा कि तुम मुझे कोई राह बताने आए हो या मेरी जान लेने? दोस्त की हत्या करने पर क्या मेरी जान बची रहेगी?"
शैतान ने कहा कि "जान तो तुम्हारी अब वैसे भी नहीं बचेगी. या तो तुम ये सभी काम करो या इसमें से कोई एक काम करो. वरना तुम मेरे हाथों मारे जाओगे."
आदमी ने सोचा कि इन चारों में से सबसे आसान और कम हानिकारक है- नशा करना. इससे किसी का कुछ नुकसान भी नहीं होगा और उसकी भी जान बच जायेगी.
और उसने नशा किया. नशा करने के बाद उसने अपनी बीबी को पीटा. उसे बचाने जब उसके मां-बाप आये तो उसने उन दोनों को खूब गालियां दीं. अपने मां-बाप को गालियां देते देख उसका दोस्त उसे समझाने बुझाने आया तो उसने आव देखा न ताव, गुस्से में आकर दोस्त को जान से मार डाला. खून के अपराध में बाद में उसे भी नौत की सज़ा मिल गई और वह भी मर गया.
तो इसका मतलब? .... आप बतायें.
(वरिष्ठ जेल अधीक्षक योगेश देसाई से सुनी  कहानी पर आधारित.)