टहलते हुए आइए, सोचते हुए जाइए.

Thursday, November 18, 2010

बहिन की गठरी भर की आस- सामा चकेबा का एक गीत और

पनवाँ जे खइल’ हो चकवा भैया

पीतिया नेरइल एही ठाम!
ओही पितिए खरलीच बहिनी
ठेवले रे धाम!
ओही पार चकवा भैया खेले ले जुआ सार
ऐही पार खरलीच बहिनी, रोदना पसार।
तोहरो रोदनवाँ गे बहिनी मोरो ना सोहाए
बाबा के संपतिया गे बहिनी आधा देबौ बाँट
बाबा के संपतिया हो भैया; लछमी तोहार
हम दूर देसिनी हो भैया, मोटरिया केर हो आस
हम परदेसिनी हो भैया, चंगेरवा केर हो आस।

बहन भाई की आदतों से परेशान है। भाई का कहीं अता-पता नहीं है। बहन उसे खोज रही है। भाई को पान खाने की आदम है। पान खाकर वह जगह-जगह पीक थूकते हुए चलता है। बहन उसी पीक के सहारे खोजते हुए उस जगह जा पहुँचती है, जहाँ उसका भाई बैठा जुआ खेल रहा है।
यह जगह नदी के उस पार वाली जगह है, जहाँ बहन नहीं जा पाती। (प्रकारान्तर से यह बहनों / लड़कियों के लिए एक निषेध है कि वह उस पार न जाए, यानी मर्यादा का उल्लंघन न करे। यह भी कि उसकी सीमा इस पार यानी घर तक ही है, अत: वह वहीं तक रहे।) बहरहाल, बहन को जब यह पता चलता है कि भाई उधर बैठा जुआ खेल रहा है तो वह भाई की बर्बादी की आशंका से डर जाती है कि कहीं भाई जुए में सब हारकर दर-दर का भिखारी न हो जाए। इस डर से वह रोने लग जाती है।
उसके रोने की आवाज सुनकर जुआ खेलता भाई बहुत परेशान हो जाता है। जुए में बाधा पड़ता देख उसे अच्छा नहीं लगता। वह कहता है कि “मुझे तुम्हारी रूलाई मुझे अच्छी नहीं लग रही। चुप हो जाओ।“ भाई उसे लालच देता है कि “तुम रोओ मत। तुम चुप हो जाओगी तो मैं पिता से मिलनेवाली अपनी सम्पत्ति का आधा हिस्सा तुम्हें दे दूँगा।“
भाई की इस बात से दुखी होकर भाई की मंगल-कामना करती रहनेवाली बहन कहती है कि “बाबा की उस सम्पत्ति से उसका क्या वास्ता? वह सम्पत्ति तो तुम्हारी लक्ष्मी है। उसे तुम अपने पास ही रखो। मेरा क्या है। मैं तो परदेसिनी, दूर देस की निवासिनी हूँ। तुमसे तो भाई, बस एक गठरी भर संदेश और मन भर प्रेम की आस रखती हूँ।
बहन की इस मंगल कामना में उसके स्वयं के लिए निर्धारित स्थान का भी जिक्र है, जो स्त्रियों की सामाजिक दशा भी बताता है कि किस तरह से पिताकी सम्पत्ति में उसकाकोई स्थान नहीं है. अगर वह इस समप्त्ति के लिए ज़िद मचाती है तो अपना नाता रिश्ता समाप्त कर लेगी. भाई के प्रेमकीडोर की आस में सामान्यत: सभी बहनें पिता की सम्पत्ति पर अपना कब्ज़ा नहीं जमातीं. आज कानूनन पिता की सम्पत्ति पर बेटी का आधा हक होने के बावज़ूद, बहनें इस ओर का रुख नहीं करती हैं।

3 comments:

रंजना said...

वाह...अतिसुन्दर पोस्ट !!! मन भावुक हो गया पढ़कर ....

जिन्होंने केवल सामा चकेवा का नाम भर सुना होगा,उनके लिए यह ज्ञान वर्धक होगा...

Vibha Rani said...

धन्यवाद रंजना. इस पर हमारा एक नाटक है. मौका मिले तो करवाइए या रास्ते बताइए.

Neha said...

bhut umda