सामा चकेबा का खेल मिथिला में चल रहा है. यह खेल भाई के सुख व कल्याण के लिए बहनें कार्तिक सुदी 5 से खेलना आरम्भ करती हैं, जो कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. इसका एक गीत और-
डाला ले बाहर भइली, बहिनी से खरलीच बहिनी
बहिनो से खरलीच बहिनी
चकवा भैया लेल डाला छीन, सुन गे राम सजनी
मचिया बइठल सुनू बाबा हो बड़इता,
से चाचा हो बड़इता से
तोरो पोता लेल डाला छीन, सुन गे रामसजनी।
कथी के तोहरो डलवा गे बेटी, दउरिया गे बेटी,
कथिए लागल चारू कोन, सुन गे राम सजनी
कांचहीं बांस केर डलवा हो बाबा, दउरिया हो बाबा,
चंपा, चमेली चारू कोन, सुन गे रामसजनी।
जब तूँहे जइबे ससुर घर गे बेटी, भैंसुर घर गे बेटी
चढ़ने के घोड़बा देबो दान सुन गे रामसजनी।
चढ़ने के घोड़वा बिकाइ गेल हो बाबा, बिकाई गेल हो बाबा,
हाथ के मुनरिया देबो दान, सुन गे रामसजनी
हाथ के मुनरिया हेराई गेल गे बेटी, हेराई गेल गे बेटी
भैया जी के किये देबौ दान, सुन गे रामसजनी।
जब तूहों दान करब' भैया जी के बाबा, भैया जी के बाबा
छोटे की ननदिया देबौ दान, सुन गे रामसजनी।
बाँस का बना डाला (टोकरा)। इसमें सामा-चकेबा के खेलने की सारी चीजें सजाकर खरलीच बहन बाहर निकलती है कि चकबा भैया आकर उसका डाला छीन लेता है।
खरलीच मचिया यानी मोढ़े पर बैठे दादा जी और क्रमश: घर के सभी बड़े लोग यानी पिता, चाचा आदि के पास जाती है और शिकायत करती है कि भइया ने उसका डाला छीन लिया है। दादा, पिता, चाचा आदि सभी पूछते हैं कि तुम्हारा डाला किस चीज से बना हुआ था और उसमें क्या-क्या लगा हुआ था?
बहन कहती है कि मेरा डाला कच्चे बाँस से बना था और उसमें चारो कोने पर चम्पा-चमेली फूल आदि लगे हुए थे।
दादा, पिता, चाचा आदि उसे बहलाते हुए कहते हैं कि कोई बात नहीं; तुम उस डाले को भूल जाओ। बड़ी होकर जब तुम अपनी ससुराल जाओगी तो हम तुम्हारी सवारी के लिए घोड़ा दान कर देंगे।
यदि यह सवारीवाला घोड़ा बिक गया तो हम तुम्हें हाथ की अंगूठी दान में दे देंगे। यदि हाथ की अंगूठी भी बिक गई तो तुम्हारे भैया को ही दान में दे देंगे।
बहन भाई को दान में दिए जाने की बात सुनकर अपनी शिकायत भूल जाती है। विगलित होते हुए वह कहती है कि जब आप भैया को दान में दे देंगे तो मैं उसे रख तो नहीं पाऊँगी। हाँ, बदले में मैं अपनी छोटी ननद दान में दे दूँगी। अर्थात् छोटी ननद से उसकी शादी करा दूँगी, ताकि उसकी जिंदगी में भी हरियाली आ जाए।