tag:blogger.com,1999:blog-7049998404354894853.post2117978193178057172..comments2023-08-16T05:39:58.112-07:00Comments on Bas Yun Hi Nahin: सहाराVibha Ranihttp://www.blogger.com/profile/12163282033542520884noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-7049998404354894853.post-10487534402478379002009-02-18T00:14:00.000-08:002009-02-18T00:14:00.000-08:00अति मार्मिक-गहरे संवेदनशील भाव हैं इस रचना के. बस,...अति मार्मिक-गहरे संवेदनशील भाव हैं इस रचना के. बस, पढ़कर विचारों में डूब गया हूँ.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7049998404354894853.post-42071506145574582532009-02-17T21:33:00.000-08:002009-02-17T21:33:00.000-08:00विभा जी, मार्मिक लघुकथा जैसी घटना है. काश, थोड़ा औ...विभा जी, मार्मिक लघुकथा जैसी घटना है. काश, थोड़ा और विस्तार से लिखा गया होता. दरअसल हमने आज दुनिया को उस मोकाम तक पहुंचा दिया है, जहां सिर्फ भगदड़ बाकी बची है. हर कोई भाग रहा है. कोई आगे निकल जा रहा है. कोई छूट जा रहा है. कोई गिर जा रहा है. जो गिर जाता है, उस पर लोगों को दया आती है. मन गीला हो जाता है, आंखें भीग जाती हैं. अक्सर ही ऐसा हो जाया करता है. मन-आंखें भीग जाती है. हृदय भर उठता है. वात्सल्य छलछक उटता है. मनुष्यता ऐसा होने के लिए मन को विवश कर देती है. ऐसा होना नहीं चाहिए. हमारी भागती दुनिया में लाखों अपंग बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें भोजन और वस्त्र तक मयस्सर नहीं. स्कूल और हरे-भरे पार्क तो बहुत दूर की बात है. ऐसे बच्चों की माताओं को भी लोरियां सुनाने की फुर्सत नहीं. वे बस जीते रहने के लिए या बड़े होकर भागती दुनिया में दुत्कारे जाने के लिए पैदा होते हैं. राज्य, विदेशी फंडिंग पर जीवन यापन कर रहे एनजीओ, राजनेता, धनाढ्य सब उनकी ओर से आंखे मूंदे हुए हैं. उन पर धर्म की भी बस इतनी सी कृपा है कि धर्मस्थलों या नदी के घाटों पर कटोरा लेकर उन्हें पांत में बैठा दिया जाता है. जो बच्चे अमीर घरों में मुंह में चांदी का चम्मच लेकर जनमते हैं, उनकी जिंदगियां जरूर थोड़ी आसान हो जाती हैं. आपकी संक्षिप्त प्रस्तुति पर पुनः बधाई.मुंहफटhttps://www.blogger.com/profile/08368420570289784107noreply@blogger.com